Tuesday, 7 January 2014

‘India is a land of many cultures’

                                                                                                     -Sohan Singh  
MUZZAFARPUR (Bihar): A national seminar ‘Shared Culture Versus Terrorism’ was organized by Akhil Bharatiya Sarvjan Sanskriti Manch, Tirhut, at the Senate Hall of BRA University here on 5 December. Dr Nand Kishore Singh, Dean, Students’ Welfare, inaugurated the meet and welcomed the guests. Among others, Yugal Kishore Sharan Shastri, a key CBI witness in Babri Masjid demolition case, Manch’s convener Harinarayan Thakur, member of the Manch’s panel of conveners Ramesh Pankaj, Prof Urmila Shukla of Chhattisgarh, Dr Abjur Kamaluddin, Principal of Nitishwar College and Pramila Verma, Divya Verma and Iqbal Shami from Maharashtra addressed the meet. Vikas Narayan Upadhyay delivered the welcome address while Hem Narayan Vishwakarma proposed a vote of thanks.
                                                                 (Published in  Forward Press,  Jan, 2014 Issue)
Forward Press.

महात्मा ज्योतिबा फूले की पुण्यतिथि पर किए श्रद्घा सुमन अर्पित

  संजय मान
नारनौल, 28नवम्बर। देश के महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फूले की 123वीं पुण्य तिथि पर स्थानीय सैनी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में एक समारोह का आयोजन किया गया। इस मौके पर सैनी सभा के वरिष्ठ उप प्रधान जयराम आढ़ती ने महात्मा ज्योतिबा फूले के चित्र पर पुष्प अर्पित करके विधिवत रूप से कार्यक्रम की शुरूआत की। स्कूल के प्राचार्य चौधरी सुरेशपाल की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस समारोह में सैनी सभा की कार्यकारिणी के पदाधिकारियों व सदस्यों ने भी शिरकत की। समारोह के मुख्य अतिथि जयराम आढ़ती ने अपने संबोधन में विद्यार्थियों को आह्वान किया कि वे महात्मा ज्योतिबा फूले के जीवन से प्रेरणा लेते हुए उनके बताए मार्ग पर चलकर समाज का उत्थान करने में अपना सहयोग करें। सभा के मीडिया प्रभारी रामचंद्र सैनी ने बताया कि महात्मा फूले की पुण्यतिथि के अवसर पर कार्यक्रम के अंत में स्कूल में पढऩे वाले आर्थिक रूप से कमजोर 40 छात्र-छात्राओं को स्कूल की तरफ से स्वेटर भी वितरित किए गए। वहीं इसी कड़ी में महात्मा ज्योतिबा फूले विकास मंच जिला महेन्द्रगढ़ ने भी स्थानीय वाल्मीकि मंदिर में महात्मा ज्योतिबा फूले की 123वीं पुन्यतिथि बड़ी श्रद्घा और आदर के साथ मनाई। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए महात्मा ज्योतिबा फूले विकास मंच के जिला अध्यक्ष मा. जयप्रकाश सैनी, सैनी सभा के पूर्व प्रधान रामसिंह सैनी, संजय अमन तथा डा. सुशील शीलू ने महात्मा ज्योतिबा फूले के जीवन पर प्रकाश डाला। वक्ताओं ने कहा कि ज्योतिबा फूले ने समस्त पिछड़े व दलित वर्ग के उत्थान के लिए काम किया था। उन्होंने कहा कि महापुरूष किसी एक समाज के न होकर समस्त राष्‍ट्र के होते हैं। उन्होंने कहा कि सावित्री बाई फूले देश की पहली शिक्षिका बनी व महिलाओं की दशा सुधारने के लिए उन्होंने अनेक आंदोलन चलाए। उन्होंने बाल-विवाह, बे-मेल विवाह, बहु विवाह तथा विधवा मुंडन का भी विरोध किया। उन्होंने कहा कि पिछड़ा व दलित वर्ग शिक्षा से कोसो दूर है इसलिए अन्याय सहने का मजबूर है। समाज का विकास शिक्षा के प्रचार व प्रसार से ही होगा। महापुरूषों की कुर्बानी तभी सार्थक होगी जब हम उनके विचारों का प्रचार करके उनके विचारों को जीवित रखेगें।
                                                             (Published in  Forward Press,  Jan, 2014 Issue)
Forward Press.

बिगाड़ा खेल : साहू समाज ने भाजपा का, सतनामियों ने कांग्रेस का

नीलम शुक्ला
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी माने जाने वाले छत्तीसगढ़ में शुरुआती नतीजों में कांग्रेस से कांटे की टक्कर हुई, घंटों असमंजस की स्थिति रही, अंत में चाउर वाले बाबा यानी रमन सिंह का जादू चला और भाजपा को फिर से अगले पांच वर्ष के लिए जनादेश मिल गया। 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने 49 सीटों पर कब्जा कर लिया है। इस बार भी कांग्रेस का सत्ता में वापसी का सपना मात्र सपना बनकर ही रह गया। कांग्रेस पिछले चुनाव के मुकाबले दो सीटें अधिक जीतते हुए 39 पर अटक गई। एक सीट निर्दलीय और दूसरी बसपा के खाते में गई है।

कांग्रेस की धार कुंद हुई
छत्तीसगढ़ की सत्ता की चाबी कहलाने वाले बस्तर को इस बार वह सम्मान नहीं मिल पाएगा, क्योंकि यहां 8 सीटों पर कब्जा जमाने के बावजूद कांग्रेस सत्ता से अब तक दूर ही है। वर्ष 2008 के चुनाव में भाजपा ने बस्तर के 12 में से 11 क्षेत्रों में विजय हासिल की थी पर इस बार बस्तर की 12 में से भाजपा केवल चार सीटों पर ही विजय हासिल कर पाई। इधर कांग्रेस जो पिछली दफा केवल एक सीट कोंटा पर ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाई थी। गौरतलब है कि कांग्रेस ने अपना सारा ध्यान बस्तर पर ही टिकाए रखा था। लिहाजा बस्तर में तो कांग्रेस ने अपना डंका बजा लिया, किन्तु प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में वह पिछड़ गई। मैदानी इलाके में सतनामी दलितों का टूटा भरोसा नहीं जीत पाई और यही कुछ हद तक उसको सत्ता से दूर ले गई। चुनाव-पूर्व बनी एक नई इकाई, दलित पुरोहितों की सतनाम सेना, ने यहां अपना असर दिखाया। सेना ने, जिसे कथित रूप से भाजपा का समर्थन हासिल था, सभी दलित चुनाव क्षेत्रों से सतनामी उम्मीदवारों को लड़वाया, और इस प्रकार कांग्रेस के वोट काटे, जिसके चलते भाजपा ठीक बीच में आई और जीत गई।

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में पहले से ज़्यादा मेहनत की थी। उसकी छत्तीसगढ़ में सीटें भी बढ़ी हैं। छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की सबसे अच्छी स्थिति बनी। उसके कई कारण हैं। पार्टी ने अपनी समझ से यथासंभव बेहतर उम्मीदवारों को टिकट दिए। क्षेत्रीय गुटों को समायोजित किया गया। पर फिर भी असंतोष कांग्रेस की कुछ टिकटों पर रहा है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने 39 विधायकों में से चार के टिकट काटे। बचे 35 विधायकों में 27 हार गए। दुर्ग सीट पर पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के कारण उनके बेटे को तीन बार हारने के बाद भी टिकट दिया गया पर इस बार अरुण ने यह सीट जीतकर पिता की इज्जत बचा ली।

मानपुर मोहला के कांग्रेसी विधायक शिवराज उसारे का टिकट काटकर वोरा के कारण लगभग अनजान महिला तेजकुंवर नेताम को उम्मीदवार बनाया गया, वह जीती भी पर पार्टी का असंतोष साफ तौर पर दिखा। कहने का तात्पर्य यह कि इस बार कांग्रेस ने आदिवासियों को तो साध लिया पर परंपरागत वोट बैंक से वह दूर हो गए। उनको न तो सतनामियों का साथ मिला और न ही मुस्लिमों का। सतनामी समाज सत्ता की बिसात को बनाने और बिगाडऩे में अहम भूमिका निभाता है। आदिवासी सीटों की बात छोड़ दें तो सतनामी वर्ग प्रदेश की हरेक विधानसभा में मौजूद है लेकिन 90 में से 10 विधानसभाओं में सतनामी समाज का सीधा दखल है। इन इलाकों में बगैर सतनामियों को रिझाए कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता। इन विधानसभा क्षेत्रों में मुंगेली, मस्तूरी, नवागढ़, अहिवारा, डोंगरगढ़, बिलाईगढ़, आरंग, सारंगढ़, सराईपाली और पामगढ़ शामिल हैं। इस बार कांग्रेस के खाते में इस समाज की 10 सीटों में से मात्र एक सीट गई है। इसी तरह कांग्रेस के दो मुस्लिम विधायक मोहम्मद अकबर और बदरुद्दीन कुरैशी सक्रियता के बावजूद हार गए। कई चुनावों में लगातार अविजित नेतापक्ष रविन्द्र चौबे और सबसे वरिष्ठ विधायक रामपुकार सिंह व बोधराम कंवर को भी इस बार पराजय का घूंट पीना पड़ा। छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में सबसे अप्रत्याशित हार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रवींद्र चौबे की हुई है। अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीसी शुक्ल के भतीजे अमितेश शुक्ला भी परिवार के गढ़ माने जाने वाले रजिम से हारे। कांग्रेस के ये सभी दिग्गज उन सीटों पर हारे जहां नई-नवेली सतनाम सेना ने उम्मीदवार उतारे।

भाजपा गिरते-पड़ते जीत ही गई
सरकार बनाने वाली भाजपा को भी सत्ता जरूर मिल गई है पर कई जातियों और जनजातियों का उन पर से विश्‍वास डगमगाया है। इसमें साहू जाति प्रमुख है। छत्तीसगढ़ में रहने वाले पिछड़े वर्ग की आबादी 27 फीसदी है। इसमें सबसे संगठित तौर पर साहू समाज ही उभरकर सामने आया है। 90 में से 34 सीटों पर साहू समाज के मतदाता प्रभावशाली संख्या में हैं और इनमें से भी 24 सीटों का पूरा नतीजा यह समाज ही तय करता है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक 27 लाख साहू मतदाता हैं और 24 सीटें ऐसी हैं जहां सारे राजनीतिक समीकरण साहू समाज के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं। भाजपा का साथ देने वाला साहू समाज भाजपा की एक बड़ी नेता के कारण अब भाजपा से दूरी बना रहा है जो विधानसभा चुनाव में भी साफ दिखा। साथ ही स्व. ताराचंद साहू का भाजपा छोड़कर नई पार्टी बनाना भी साहू समाज को भाजपा से दूर ले गया। ताराचंद की छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के कमजोर हो जाने के बावजूद इन चुनावों में भाजपा के केवल दो साहू उम्मीदवार, रमशीला साहू व अशोक साहू ही जीत सके। मंत्री चंद्रशेखर साहू को हार का सामना करना पड़ा।

इसी तरह पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडे और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर की वापसी से नए सत्ता समीकरण खुलेंगे। वैसे अगर गौर किया जाए तो छत्तीसगढ़ भाजपा में व्यवसायी विधायकों ने शिकंजा पहले से ज़्यादा कस लिया है। धाकड़ विधायक बृजमोहन अग्रवाल सहित अमर अग्रवाल, रोशनलाल अग्रवाल, संतोष बाफना, राजेश मूणत, गौरीशंकर अग्रवाल, लाभचंद बाफना, विद्यारतन भसीन, श्रीचंद सुंदरानी और शिवरतन शर्मा वगैरह इसका प्रतिनिधित्व करते हैं।
सच यह भी है कि छत्तीसगढ़ में जातिगत आधार पर बदले राजनीतिक समीकरण सिर्फ विधानसभा तक ही सीमित नहीं रहेंगे बल्कि वृहद् रूप लेकर अपना असर 2014 के लोकसभा चुनाव में भी दिखाएंगे। बदलते जातिगत समीकरण किसी भी राजनीतिक दल के समीकरण बना व बिगाड़ सकते हैं इसमें कोई शक नहीं। अब देखना यह है कि यह समीकरण किसको कितना फायदा पहुंचाते हैं और किसको कितना नुकसान।
                                                                 (Published in  Forward Press,  Jan, 2014Issue)

Forward Press.