Friday 19 July 2013

भगवान की धरती पर अस्पृश्यता

                                                                                                    प्रणीता शर्मा
र्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश में पहाड़ी दलितों की सामाजिक, रानीतिक व आर्थिक स्थिति के अध्ययन पर आधारित एक रपट के अनुसार, राज्य में मनरेगा, स्वास्थ्य योजनाओं, आंगनवाड़ी केन्द्रों और स्कूलों जहां बच्चों को मध्यान्ह भोजन दिया जाता है वहां दलितों के साथ भेदभाव होता है।
यह रपट 'ग्रामीण तकनीकी व विकास केन्द्र, स्वैच्छिक कार्यसमूह, पालनपुर द्वारा 'हिमाचल प्रदेश पहाड़ी दलित केन्द्र के लिए राज्य के दूरदराज के गांव में की गई केस स्टडी पर आधारित है। 'यह पहाड़ी दलितों की स्थिति का इस तरह का पहला आकलन है। हमने अपनी रपट को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेज दिया है। हमें उम्मीद है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप कर उचित कार्यवाही करेगा केन्द्र के संयोजक सुखदेव विश्वप्रेमी कहते हैं-
यह आकलन राज्य के 11 जिलों की 29 पंचायतों के 61 गांवों में किए गए मैदानी अध्ययनों पर आधारित है। अध्ययन के अनुसार, केवल 3.1 प्रतिशत उत्तरदाता, अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के बारे में जानकारी रखते हैं।
रिपोर्ट बताती है कि केवल 15.5 प्रतिशत उत्तरदाता, गांधी कुटीर, इंदिरा आवास योजना, राजीव आवास योजना व अटल आवास योजना से लाभान्वित हुए हैं। लगभग 70 प्रतिशत दलितों का कहना है कि उन्हें केवल न्यूनतम चिकित्सकीय सुविधाएं प्राप्त हैं। केवल 5.9 प्रतिशत को जननी सुरक्षा योजना से लाभ प्राप्त हुआ है। इसके विपरीत, रपट बताती है कि मंडी जिले की बाथरी पंचायत में लोगों ने एक महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता से अपने बच्चों को टीका लगवाने से इसलिए इंकार कर दिया, क्योंकि वह दलित थी।
मनरेगा के अंतर्गत पंजीकृत अनुसूचित जातियों के सदस्यों का प्रतिशत 60.2 है और इनमें से केवल 15 प्रतिशत को 15 दिनों के अंदर काम मिला। 'कुछ गांवों की आंगनवाडिय़ों से चौंका देने वाली खबर मिली...गांव वाले अपने बच्चों को उन आंगनवाडिय़ों में नहीं भेजते, जहां अनुसूचित जातियों के बच्चों को दाखिला दिया जाता है। अगर किसी आंगनवाड़ी का रसोईया अनुसूचित जाति का है तो सामान्य वर्ग के बच्चों के माता-पिता उनसे कह देते हैं कि वे केन्द्र में खाना न खाएं।
विश्वप्रेमी बताते हैं-
मण्डी और रामपुर के गांवों में मध्यान्ह भोजन परोसे जाने के समय, दलित समुदायों के बच्चों से दूर बिठाया जाता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले को अपने संज्ञान में ले लिया है।
                                                                
Forward Press.

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