Monday, 24 June 2013

सामाजिक मुद्दों पर आक्रमक बने फारवर्ड प्रेस

  -बीरेंद्र कुमार यादव 
विचार और बाजार के बीच समन्वय जरूरी: आज विचार और बाजार एक दूसरे के पूरक हो गए हैं। यदि अपने मिशन या विचार के प्रचार-प्रसार के लिए किसी पत्रिका प्रकाशन करते हैं तो जरूरी है कि वह लोगों तक पहुंचे। अधिकाधिक पाठक तक पहुंचाना हर प्रकाशक की जिम्मेवारी होती है और यही उसकी सफलता भी है। इस पूरी प्रक्रिया को कई चरणों से गुजरना पड़ता है। हर चरण के लिए अलग-अलग खर्चे भी हैं। इन खर्चों की नियमित भरपाई के लिए हमें बाजार की मदद लेनी पड़ती है। हमें बाजार पर आश्रित होना पड़ता है। वह बाजार विज्ञापन का हो सकता है, अनुदान का हो सकता है, ग्राहक के रूप में हो सकता है, बिक्री के रूप में हो सकता है। बाजार का स्वरूप जैसा भी हो, उसका अंतिम लक्ष्य लागत की वापसी होता है। ताकि प्रकाशन की पूरी प्रक्रिया को नियमित, सुचारू और व्यवस्थित रखा जा सके। हम और आप जिस पत्रिका से जुड़े हैं, वह एक विचार, एक मिशन के लिए काम रही है। इसकी एक सामाजिक, राजनीतिक और वैचारिक जिम्मेवारी है। इस जिम्मेवारी के निर्वहन में हम और आप एक इकाई के रूप में काम कर रहे हैं और इसी इकाई को मिलाकर पत्रिका का परिवार बना है। इसीलिए हमारी जिम्मेवारी भी बढ़ जाती है। हमें विचार और बाजार दोनों स्तरों पर सोचना होगा। विचार के स्तर पर हम खबर व आलेखों के रूप में योगदान करते ही हैं। लेकिन अब बाजार के स्तर पर गंभीरता से सोचना होगा। इस दिशा में पहल करनी होगी। बाजार व विचार के समन्वय के बीच प्रबंधन की भी महत्वपूर्ण भूमिका है और उम्मीद करनी चाहिए कि प्रबंधन भी अपनी भूमिका को लेकर सकारात्मक सोच रखता है।

सामाजिक मुद्दों पर बनें आक्रामक: फॉरवर्ड प्रेस जैसी वैचारिक पत्रिका में काम करने के लिए सामाजिक सरोकारों को लेकर अपनी पहचान बनानी होगी। पत्रकारिता की मुख्यधारा के साथ उसके सामाजिक दायित्वों का भी निर्वाह करना होगा। इसके लिए जरूरी है कि हमारी अपनी सामाजिक व वैचारिक पहचान भी हो। लेकिन पिछड़े व दलित समाज के पत्रकार सामाजिक सरोकारों को लेकर आक्रामक नहीं हैं। पटना मेंं हमारा अनुभव रहा है कि इस वर्ग के लोग अपनी जाति छुपाने में काफी ऊर्जा का व्यय करते हैं। अगर दो पिछड़ी जाति के पत्रकार मिल गए तो सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करेंगे, मीडिया की सामाजिक बनावट पर चर्चा करेंगे, लेकिन सार्वजनिक मंच पर इसके लिए वे तैयार नहीं होते हैं। जबकि जरूरी है कि एफपी परिवार का हर सदस्य सामाजिक व जातीय मुद्दों पर सार्वजनिक मंचों पर बहस करें। सामाजिक पहचान के लिए यह जरूरी है। अपना पक्ष भी मुखरता से रखें, ताकि विचार के स्तर पर एक छवि बने। आपकी यही छवि पत्रिका के विचार व बाजार के विस्तार में सहायक व निर्णायक होगी।

स्थानीय स्तर पर मजबूत हो नेटवर्क: पत्रिका का पाठक ( डाक सदस्य) बनाने और विज्ञापन संकलन में आपका संबंध और नेटवर्क काफी सहायक हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि आपका स्थानीय नेटवर्क मजबूत हो। स्थानीय स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों में भागीदारी, आयोजनों की अगुआई आदि कार्यों में सक्रियता से आपकी पहचान बनेगी। साथ ही पत्रिका की चर्चा भी होगी। सामाजिक व राजनीतिक मंचों पर पत्रिका की चर्चा होगी तो स्टॉलों पर भी उसकी मांग बढ़ेगी। स्थानीय अधिकारियों से विज्ञापन में भी काफी सहायता मिलेगी। इसलिए जरूरी है कि हमारा स्थानीय नेटवर्क मजबूत हो।

(बीरेंद्र कुमार यादव फारवर्ड प्रेस के बिहार प्रदेश ब्‍यूरो प्रमुख हैं। उनहोंने यह लिखित वक्‍तव्‍य फारवर्ड प्रेस के संवाददाताओं के लिए अयोजित कार्यशाला, 21-22 जून, 2013 को प्रस्‍तुत किया था) 



Forward Press.

1 comment:

  1. वाकैय में अच्‍छा अनुभव रहा फॉरवर्ड के इस समागम का

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