Wednesday, 10 July 2013

आम्बेडकर और फुले के गायक को जेल भेजा गया

                                                                                                             अमरेंद्र यादव 
जोतिबा फुले और आम्बेडकर के विचारों को गीतों में पिरोकर वंचित वर्गों में सामाजिक चेतना का संचार करने वाले कबीर कला मंच के शीतल साठे और सचिन माली को जेल भेज दिया गया है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार 3 अप्रैल को महाराष्ट्र विधानसभा के पास उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया था। महाराष्ट्र सरकार और पुलिस का आरोप है कि कबीर कला मंच के कार्यकर्ता माओवादी विचारधारा का प्रचार करते हैं और वे नक्सल हैं। जबकि साठे और उनके साथियों का कहना है कि वे जोतिबा फुले और आम्बेडकर के विचारों को गीतों में पिरोकर दलितों और पिछड़ों में जागरुकता फैलाने का काम करते हैं। पुलिस मंच के इन कलाकारों के पीछे एक अरसे से पड़ी हुई थी और उन्हें ढूंढ रही थी।
शीतल कबीर कला मंच से लगभग एक दशक से जुड़ी हुई हैं और भारत के विभिन्न स्थानों पर जाकर बहुजनों के पक्ष में सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक पर्यावरण बनाने का काम कर रही हैं। कबीर कला मंच का दावा है कि गुजरात में जब 2002 में दंगे हुए तो कबीर कला मंच ही पहला ऐसा दलित ग्रुप था जिसने वहां जाकर सामाजिक सद्भावना स्थापित करने की कोशिश की। महाराष्ट्र के खैरलांजी में जब दलितों के साथ अत्याचार हुए तब भी इसने दलितों के पक्ष में आवाज उठाई थी। लेकिन जैसे ही यह आवाज पुणे पहुंची, उसके खिलाफ  पुलिस कार्रवाई शुरू हो गई और अब महाराष्ट्र की एटीएस उन्हें नक्सली बताने लगी है। सरकार कहती है कि मंच नक्सलियों की मदद करता है जबकि मंच से जुड़े कलाकारों का कहना है कि गरीबों की जमीन निगलने वाले एसईजेड (सेज) और बिल्डरों के खिलाफ  आंदोलनों से मंच के जुडऩे से बौखलाकर सरकार ने मंच को नक्सली का नाम दे दिया। दूसरी ओर, सरकार की दलील है कि ऐसे संगठनों को काबू में करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि पहली बार शहरी इलाकों में माओवादियों की आवाजें सुनाई दे रही हैं।
जेल भेजी गई शीतल ने पुणे यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में एमए किया है जबकी सचिन एमए करने के बाद पुणे विश्वविद्यालय से ही एमफिल कर रहा है। उनके साथी बताते हैं कि शीतल में यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के दौरान दबे-कुचलों के लिए लड़ाई का जज्बा जागा और वह 2002 में अमरनाथ चंदेलिया के कबीर कला मंच में शामिल हो गईं। एटीएस की फाइलों में शीतल और उनके साथियों पर लोगों को भड़काने और क्रांति व क्रांतिकारियों की कहानियां सुनाने का आरोप है। शीतल अक्सर भगत सिंह की कहानियां सुनाती हैं और आम्बेडकर, जोतिबा फुले और अन्नाभाऊ साठे को अपना आदर्श मानती हैं। कबीर कला मंच बचाओ समिति के शाहिर संभाजी कहते हैं, शीतल सिर्फ  एक बेहतरीन गायक ही नहीं है बल्कि खूबसूरत कविताएं लिखने के साथ-साथ म्यूजिक भी कम्पोज करती है। अगर वह इस देश के बहुजनों के पक्ष में आवाज उठाती है तो यह उसका प्रजातांत्रिक अधिकार है और इसे कोई उससे छीन नहीं सकता।
गौरतलब है कि एटीएस ने 2011 में एंजला को नक्सलियों का सचिव बताकर गिरफ्तार किया था और कहा था कि नक्सली कबीर कला मंच  की फंडिंग कर रहे हैं। उसके बाद कबीर कला मंच के 24 साल के सिद्धार्थ भोंसले और दीपक डांगले की गिरफ्तारी हुई। दो लोगों की नक्सलियों के नाम पर गिरफ्तारी से मंच के कई कार्यकर्ता हिल गए और उन्हें भूमिगत होना पड़ा। एटीएस का आरोप है कि इन लोगों में से कई के संबंध नक्सलियों से हैं। नक्सली बताने का काम उन इकबालिया बयानों के आधार पर किया जा रहा है जो पुलिस ने गिरफ्तार लोगों से हासिल किए हैं।
कबीर कला मंच बचाओ समिति का कहना है कि आपने भले ही कभी बंदूक छुई भी न हो लेकिन अगर आपकी ढपली पुलिस की गोली से तेज चलेगी तो आप सत्ता की नजर में नक्सल हो जाएंगे। कबीर कला मंच उस जनता का सांस्कृतिक चेहरा है जिससे भाषा छीन ली गई, संस्कृति से बेदखल कर दिया गया, उनके जमीन और आजीविका के साधन छीन लिए गए और सदियों की गुलामी में धकेल दिया गया और अब कारपोरेट घरानों के इशारे पर इनकी अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा जा रहा है जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ  है। गरीब और मजदूर वर्ग के लिए उनके पक्ष में और उनके बारे में गीत गाना और नाटक करना किसी भी दृष्टि से अपराध नहीं है।
                                                            (अमरेंद्र यादव फारवर्ड प्रेस के प्रमुख संवाददाता हैं)

                                                             (Published in  Forward Press,  May, 2013 Issue)
                                                               

Forward Press.

5 comments:

  1. ये तो बहुत ही गलत बात है कि आम्‍बेडकर का गाना गाने पर जेल,

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