-वीरेंद्र कुमार यादव
लालू प्रसाद के राजद के सांसद उमाशंकर सिंह की मृत्यु से खाली हुई बिहार की महाराजगंज लोकसभा सीट के लिए गत 2 जून को उपचुनाव हुए, जिसमें राजद उम्मीदवार प्रभुनाथ सिंह, राजपूत की जीत हुई और जनता दल यूनाइटेड, जद यू के उम्मीदवार शिक्षा मंत्री प्रशांत कुमार शाही, भूमिहार की करारी हार। इनके बीच मतों का अंतर एक लाख से अधिक का रहा। राजद के दिवंगत उमाशंकर सिंह की पहचान भी राजपूत नेता के तौर पर ही थी।
यह उपचुनाव राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के लिए संजीवनी साबित हुआ और उनकी राजनीतिक संभावनाओं को सिंचित कर गया। महाराजगंज का यह समीकरण आगे कायम रहेगा इस पर तो विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन इसने यह तो साबित किया ही है कि लालू प्रसाद यादव की वोट शिफ्टिंग क्षमता का जादू और उनका असर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। महाराजगंज उपचुनाव के नतीजों के बाद राजद का दावा है कि बिहार चार जातियों, पीएमआरवाई, पासवान, मुसलमान, राजपूत व यादव का नया समीकरण बन रहा है। अगर इस दावे को सच माना जाए तो महाराजगंज के चुनाव को हम बिहार की राजनीति के लिए संक्रमण काल कह सकते हैं, जिससे जातियों का धु्रवीकरण नए सिरे से शुरू हो रहा है।
इस चुनाव ने एनडीए के दोनों घटकों भाजपा व जद यू के संबंधों में लंबे समय से चली आ रही खटास को भी अंतिम रूप दे दिया, जिसका नतीजा इसकी टूट के रूप में सामने आया। जेडी यू ने 5 जून को उपचुनाव का परिणाम आने के बाद प्रेस कांफ्रेस नहीं की परन्तु बीजेपी ने की। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री राजीव प्रताप रूडी ने एनडीए की हार पर दु:ख व्यक्त किया और जेडी यू के घावों पर नमक छिड़़कते हुए कहा, यदि लोकसभा का चुनाव होता है तो नरेन्द्र मोदी की जितनी जरूरत बीजेपी को है उतनी ही जेडी यू को है। राजीव प्रताप रूडी ने संकेतों में यह भी कहा कि गुजरात में मोदी के बिना चुनाव प्रचार में गए छह की छह सीटों पर बीजेपी की जीत हो गई लेकिन नीतीश कुमार द्वारा महाराजगंज का चुनावी दौरा किए जाने के बावजूद जदयू का उम्मीदवार हार गया।
दरअसल, चुनाव के दौरान एक ओर राजग बंटा रहा, वहीं दूसरी ओर राजपूत वोटरों ने राजद के पक्ष में एकजुट होकर मतदान किया। यहां तक कि जद यू के राजपूत मंत्रियों ने भी परोक्ष रूप से प्रभुनाथ सिंह के पक्ष में प्रचार किया। जब इसकी सूचना मुख्यमंत्री को मिली तो उन्होंने उन मंत्रियों को फटकार भी लगाई।
नई राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे पासवान
-अनुसूचित जाति में पासवानों की संख्या अच्छी-खासी है। इस जाति की राजनीतिक ताकत को कमजोर करने के लिए नीतीश कुमार ने दलित से अलग महादलित बनाया और उसमें पासवान जाति को शामिल नहीं किया। यह जाति रामविलास पासवान को अपना नेता मानती रही है। महाराजगंज में पासवानों ने एकमुश्त वोट राजद को दिया।
अति पिछड़ों में आक्रोश
-महाराजगंज में अति पिछड़ों का आक्रोश भी दिखा। पंचायती राज में अतिपिछड़ों को आरक्षण देकर नीतीश कुमार ने उनका एकमुश्त समर्थन पाया था। इसको लेकर उनमें जबरदस्त उत्साह भी था। पंचायत राज में अति पिछड़ों ने मुखिया, प्रमुख और जिला परिषद के अध्यक्ष पद पर बैठकर आत्मसम्मान का बोध प्राप्त किया था। लेकिन नीतीश कुमार के राज में पंचायत सचिव से लेकर मुख्य सचिव तक नौकरशाही तक का भी राज चलता है। जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का आरोप यहां आम बात है। जबकि आरक्षण के कारण अति पिछड़ों में जो नया तबका राजनीतिक तौर पर उभरा वह सरकारी कर्मचारियों से सम्मान की अपेक्षा करता है। लेकिन न तो नीतीश कुमार की ऐसी कोई मंशा दिखती है और उनके नौकरशाह तो भला ऐसा क्यों चाहेंगे। ऐसे में अति पिछड़ों ने जब मौका आया तो कंधा झटक दिया।
कुल मिलाकर महाराजगंज ने सभी पक्षों को नए सामाजिक समीकरण गढऩे और तलाशने का मौका दिया है। अभी लोकसभा के चुनाव आने में लगभग एक वर्ष शेष है। जद-यू भाजपा का गठबंधन टूटना तो एक शुरुआत भर है। आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति कई प्रकार की उठा-पटक की गवाह बनेगी लेकिन इस सबके बाद इस उपचुनाव के नतीजों ने जो बिहार की राजनीति को जो दिशा दी है उसकी उपेक्षा शायद कोई भी पक्ष नहीं करेगा।
(एडिटोरियल इनपुट : एफपी डेस्क व प्रेमजीत पियंवद)
बॉक्स
राजद व जदयू को विधानसभा वार मिले वोट
विस क्षेत्र राजद जदयू अंतर
तरैया 62667 33023 29644
बनियापुर 68715 41493 26772
मांझी 67915 37641 30274
एकमा 55770 41176 14594
महाराजगंज 54556 48904 5652
गोरेयाकोठी 71813 41637 30176
कुल वोट 381452 244326 137126
(वीरेंद्र कुमार यादव फारवर्ड प्रेस के बिहार ब्यूरो प्रमुख हैं)
(Published in Forward Press, July, 2013 Issue)
Forward Press.
लालू प्रसाद के राजद के सांसद उमाशंकर सिंह की मृत्यु से खाली हुई बिहार की महाराजगंज लोकसभा सीट के लिए गत 2 जून को उपचुनाव हुए, जिसमें राजद उम्मीदवार प्रभुनाथ सिंह, राजपूत की जीत हुई और जनता दल यूनाइटेड, जद यू के उम्मीदवार शिक्षा मंत्री प्रशांत कुमार शाही, भूमिहार की करारी हार। इनके बीच मतों का अंतर एक लाख से अधिक का रहा। राजद के दिवंगत उमाशंकर सिंह की पहचान भी राजपूत नेता के तौर पर ही थी।
यह उपचुनाव राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के लिए संजीवनी साबित हुआ और उनकी राजनीतिक संभावनाओं को सिंचित कर गया। महाराजगंज का यह समीकरण आगे कायम रहेगा इस पर तो विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन इसने यह तो साबित किया ही है कि लालू प्रसाद यादव की वोट शिफ्टिंग क्षमता का जादू और उनका असर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। महाराजगंज उपचुनाव के नतीजों के बाद राजद का दावा है कि बिहार चार जातियों, पीएमआरवाई, पासवान, मुसलमान, राजपूत व यादव का नया समीकरण बन रहा है। अगर इस दावे को सच माना जाए तो महाराजगंज के चुनाव को हम बिहार की राजनीति के लिए संक्रमण काल कह सकते हैं, जिससे जातियों का धु्रवीकरण नए सिरे से शुरू हो रहा है।
इस चुनाव ने एनडीए के दोनों घटकों भाजपा व जद यू के संबंधों में लंबे समय से चली आ रही खटास को भी अंतिम रूप दे दिया, जिसका नतीजा इसकी टूट के रूप में सामने आया। जेडी यू ने 5 जून को उपचुनाव का परिणाम आने के बाद प्रेस कांफ्रेस नहीं की परन्तु बीजेपी ने की। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री राजीव प्रताप रूडी ने एनडीए की हार पर दु:ख व्यक्त किया और जेडी यू के घावों पर नमक छिड़़कते हुए कहा, यदि लोकसभा का चुनाव होता है तो नरेन्द्र मोदी की जितनी जरूरत बीजेपी को है उतनी ही जेडी यू को है। राजीव प्रताप रूडी ने संकेतों में यह भी कहा कि गुजरात में मोदी के बिना चुनाव प्रचार में गए छह की छह सीटों पर बीजेपी की जीत हो गई लेकिन नीतीश कुमार द्वारा महाराजगंज का चुनावी दौरा किए जाने के बावजूद जदयू का उम्मीदवार हार गया।
दरअसल, चुनाव के दौरान एक ओर राजग बंटा रहा, वहीं दूसरी ओर राजपूत वोटरों ने राजद के पक्ष में एकजुट होकर मतदान किया। यहां तक कि जद यू के राजपूत मंत्रियों ने भी परोक्ष रूप से प्रभुनाथ सिंह के पक्ष में प्रचार किया। जब इसकी सूचना मुख्यमंत्री को मिली तो उन्होंने उन मंत्रियों को फटकार भी लगाई।
नई राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे पासवान
-अनुसूचित जाति में पासवानों की संख्या अच्छी-खासी है। इस जाति की राजनीतिक ताकत को कमजोर करने के लिए नीतीश कुमार ने दलित से अलग महादलित बनाया और उसमें पासवान जाति को शामिल नहीं किया। यह जाति रामविलास पासवान को अपना नेता मानती रही है। महाराजगंज में पासवानों ने एकमुश्त वोट राजद को दिया।
अति पिछड़ों में आक्रोश
-महाराजगंज में अति पिछड़ों का आक्रोश भी दिखा। पंचायती राज में अतिपिछड़ों को आरक्षण देकर नीतीश कुमार ने उनका एकमुश्त समर्थन पाया था। इसको लेकर उनमें जबरदस्त उत्साह भी था। पंचायत राज में अति पिछड़ों ने मुखिया, प्रमुख और जिला परिषद के अध्यक्ष पद पर बैठकर आत्मसम्मान का बोध प्राप्त किया था। लेकिन नीतीश कुमार के राज में पंचायत सचिव से लेकर मुख्य सचिव तक नौकरशाही तक का भी राज चलता है। जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का आरोप यहां आम बात है। जबकि आरक्षण के कारण अति पिछड़ों में जो नया तबका राजनीतिक तौर पर उभरा वह सरकारी कर्मचारियों से सम्मान की अपेक्षा करता है। लेकिन न तो नीतीश कुमार की ऐसी कोई मंशा दिखती है और उनके नौकरशाह तो भला ऐसा क्यों चाहेंगे। ऐसे में अति पिछड़ों ने जब मौका आया तो कंधा झटक दिया।
कुल मिलाकर महाराजगंज ने सभी पक्षों को नए सामाजिक समीकरण गढऩे और तलाशने का मौका दिया है। अभी लोकसभा के चुनाव आने में लगभग एक वर्ष शेष है। जद-यू भाजपा का गठबंधन टूटना तो एक शुरुआत भर है। आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति कई प्रकार की उठा-पटक की गवाह बनेगी लेकिन इस सबके बाद इस उपचुनाव के नतीजों ने जो बिहार की राजनीति को जो दिशा दी है उसकी उपेक्षा शायद कोई भी पक्ष नहीं करेगा।
(एडिटोरियल इनपुट : एफपी डेस्क व प्रेमजीत पियंवद)
बॉक्स
राजद व जदयू को विधानसभा वार मिले वोट
विस क्षेत्र राजद जदयू अंतर
तरैया 62667 33023 29644
बनियापुर 68715 41493 26772
मांझी 67915 37641 30274
एकमा 55770 41176 14594
महाराजगंज 54556 48904 5652
गोरेयाकोठी 71813 41637 30176
कुल वोट 381452 244326 137126
(वीरेंद्र कुमार यादव फारवर्ड प्रेस के बिहार ब्यूरो प्रमुख हैं)
(Published in Forward Press, July, 2013 Issue)
Forward Press.
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