Thursday, 25 July 2013

फॉरवर्ड की सोच,

IVAN KOSTKA
यह एक दिलचस्प संयोग है कि जुलाई में, जब हम उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आम्बेडकर के अमेरिका आगमन का शताब्दी वर्ष मना रहे होंगे, तब मैं अमेरिका में रहूंगा-'लीडरशिप' पर अपनी पीएचडी के आखिरी वर्ष के सिलसिले में। हम दोनों ही छात्रवृत्ति पर बंबई से उच्च शिक्षा के लिए न्यूयार्क रवाना हुए थे। वे 22 की उम्र में और मैं 25 की उम्र में। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह हम दोनों के जीवन की पहली और आखिरी समानता थी। जब मैं इस माह के फो
टो फीचर (पृष्ठ 6-7) के लिए अनुसंधान कर रहा था तब मुझे पहली बार यह पता चला कि आम्बेडकर ऐसे पहले नेता थे जो आधुनिक काल में पढ़ाई के लिए अमेरिका गए थे। दूसरे थे जयप्रकाश 'जेपी' नारायण। आम्बेडकर अमेरिका इसलिए गए, क्योंकि बड़ौदा के महाराजा ने कोलंबिया विश्वविद्यालय में उनकी पढ़ाई के लिए वजीफा दिया था और जयप्रकाश इसलिए क्योंकि उन्हें हर ब्रिटिश वस्तु से चिढ़ थी।
हमारी आवरण कथा की मुख्य लेखिका, मानवशास्त्री नंदिनी सुंदर भी कोलंबिया विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा हैं। वे इस समय देहली स्कूल ऑफ  इकानामिक्स में प्राध्यापक हैं और इन दिनों मीडिया के समाजशास्त्र पर केन्द्रित पाठ्यक्रम पढ़ा रही हैं। अपनी पहली पुस्तक 6 सबलटिन्स एण्ड सोवरिन्स : एन एन्थ्रोपोलाजिकल हिस्ट्री ऑफ  बस्तर 1854-2006 (अधीनस्थ और संप्रभु : बस्तर का मानवशास्त्रीय इतिहास 1854-2006) आक्सफोर्ड
यूनिवर्सिटी प्रेस, नई दिल्ली 8 से लेकर पत्र-पत्रिकाओं और समाचारपत्रों में लिखे गए अपने असंख्य लेखों के चलते, उनकी पहचान बस्तर और उसके आदिवासी रहवासियों की विशेषज्ञ के रूप में स्थापित हो गई है। वे माओवादियों की हिंसा और सरकार द्वारा माओवादियों के विरुद्ध असंवैधानिक कार्यवाहियों-दोनों की ही विरोधी हैं। वे उन निर्दोष आदिवासियों के साथ हैं जो माओवादियों व सरकार के आपसी संघर्ष का खामियाजा भुगत रहे हंै। इसलिए, मई के अंत में बस्तर में छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं पर हुए हमले के बाद, मुझे यह तय करने में देरी नहीं लगी कि इस विषय पर फारवर्ड प्रेस की आवरण कथा कौन लिखेगा। यद्यपि वे अत्यंत व्यस्त थीं परंतु मेरे लगातार पीछे पड़े रहने का वांछित असर हुआ और उन्होंने लाल कोरीडोर में होने वाली घटनाओं के प्रति, भारत की 'मुख्यधारा' के मीडिया के दृष्टिकोण की कड़ी आलोचना करते हुए एक लेख हमारे लिए लिखा।
मीडिया में शनै:-शनै: अगले आमचुनाव की चर्चा होने लगी है-चाहे वे निर्धारित समय पर हों या उसके पूर्व। मोदी के भाजपा में ऊंचे होते कद के कारण जदयू ने भाजपा/राजग से नाता तोड़ लिया है। प्रणय प्रियंवद इस प्रश्न पर विचार कर रहे हैं कि भाजपा के सुशील कुमार मोदी की जगह बिहार का उपमुख्यमंत्री किसे बनाया जाना चाहिए। हमारे बिहार के नए ब्यूरो प्रमुख वीरेन्द्र कुमार यादव, लालू प्रसाद की राजद की महाराजगंज उपचुनाव में विजय से उभरे नए सामाजिक समीकरणों का विश्लेषण कर रहे हैं। फारवर्ड प्रेस के गुजरात संवाददाता अर्नाल्ड क्रिस्टी बता रहे हैं कि भाजपा ने किस तरह राज्य में कांग्रेस का खाम किला ध्वस्त किया और अपनी पहचान व मुद्दों/विचारधारा पर आधरित राजनीति को मजबूती दी। हमारे घुुमक्कड़ संवाददाता संजीव चंदन ने दलित नेता रामदास अठावले से लंबा साक्षात्कार लिया, जिसमें अठावले ने यह समझाने की कोशिश की कि वे आम्बेडकरवादी आरपीआई छोड़कर दलितों की पूर्व शत्रु शिवसेना में क्यों गए।
पिछले महीने भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई, दलित उद्यमिता का केन्द्र भी बन गई। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने डिक्की वेंचर केपिटल फंड का उदघाटन किया। जहां भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में बाजार का आकलन अच्छा नहीं है वहीं दलित उद्यमिता के मामले में सरकार और उद्योग, दोनों ही आशावान हैं। इस माह से हमने 'दादू' की एक नई श्रृंखला प्रारंभ की है 'अपना व्यवसाय शुरू करना'। सन् 1915 में जब आम्बेडकर का अमेरिका प्रवास खत्म होने को था, महान अफ्रीकी-अमेरिकी नेता बूकर टी. वाशिंगटन मृत्यु को प्राप्त हुए। युवा आम्बेडकर उनके जीवन और कृतित्व से बहुत प्रभावित थे, विशेषकर शिक्षा, आर्थिक विकास व उद्यमिता पर उनके जोर से। वे चाहते थे कि उनके सद्य-स्वतंत्र अफ्रीकी-अमेरिकी साथी, इन सबसे लाभ प्राप्त करें। आम्बेडकर निश्चित रूप से डिक्की की फारवर्ड सोच से सहमत होते।
अगले माह तक के लिए
सत्य में आपका
                                                   (Published in  Forward Press,  July, 2013 Issue)
Forward Press.

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