Monday, 8 July 2013

एक बहादुर रेजीमेंट की गाथा

        
                                                                                     
   अशोक चौधरी     
चमार रेजीमेंट और अनुसूचित जातियों की सेना मे भागीदारी, हवलदार सुलतान सिंह की पहली पुस्तक है। लेखक ने इस कृति के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि एक ऐसी रेजीमेंट जो कि आज अस्तित्व में नहीं है, उसके जवान कितने बहादुर थे। 
पुस्तक के आवरण पर छपा वाक्य जब आप घर जाएं तो उनसे जरूर कहना कि उनके कल के लिए हमने अपना आज दिया है। ये शब्द कोहिमा शहीद स्मारक पर आज भी अंकित हैं। पुस्तक उन बहादुर जवानों की याद में लिखी गई है, जिन्होंने दुश्मनों से लड़ते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। लेखक ने ऐतिहासिक संदर्भों केमाध्यम से द्वितीय विश्व युद्ध में चमार रेजीमेंट के जवानों की शौर्य गाथा को वर्णित किया है। पुस्तक बताती है कि रेजीमेंट के उसी समुदाय के जवानों ने रणक्षेत्र में कितनी बहादुरी का परिचय दिया था, जिस समुदाय के सदस्यों को आज गुणविहीन और डरपोक घोषित कर उच्च पदों पर आसीन नहीं किया जा रहा है। लेखक पलासी के युद्ध का संदर्भ देते हुए लिखते हैं कि जंग में अंग्रेज सेना के पास तीन हजार युवक थे जो अनुसूचित जाति के थे और मीर जाफर के पास पचास हजार सैनिक थे। इसके बाद भी अंग्रेज सेना के जवानों ने 50,000 सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे जो उनकी वीरता का परिचायक था।
पुस्तक लेखक की कठिन मेहनत और लम्बे शोध का परिणाम है। यह पुस्तक कोई कहानी नहीं है बल्कि एक ऐसी सच्चाई है जिसे नकारना शायद ही किसी के बस की बात हो। पुस्तक वर्तमान सेना में जो मिथक व्याप्त हैं उन्हें दूर करने की जरूरत पर बहस की शुरुआत करेगी। पुस्तक में केवल चमार रेजीमेंट पर ही नहीं बल्कि  सेना से जुड़े हर उस पहलू पर रोशनी डालने का प्रयास किया गया है जिसके बारे में आम लोगों में जिज्ञासा है। मसलन, सैनिक लड़ता क्यों है, सैनिक सेवाओं में प्राप्त होने वाली सुविधाएं और प्रत्येक नागरिक का सैन्य सेवा करने का अधिकार। भीमराव आम्बेडकर के सेना के बारे में विचारों का भी पुस्तक में समावेश है। कुल मिलाकर यह पुस्तक मात्र नहीं है। यह ब्रिटिश काल से लेकर अब तक के सेना के इतिहास का एक सच्चा दस्तावेज है। यह सेना पर एक शोध प्रबंध है। 

Forward Press.

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